“पुरातत्वविदों के अध्ययन के अनुसार, राजस्थान का ऐतिहासिक काल पूर्व पाषाण युग से शुरू होता है। लगभग तीस लाख वर्ष पूर्व यहाँ के मानव मुख्य रूप से बनास नदी के तटीय क्षेत्रों या अरावली के पार बहने वाली नदियों के किनारे रहते थे। आदिमानव पत्थर के बने उपकरणों की सहायता से भोजन की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान भटकता रहता था। इन प्राचीन उपकरणों के अवशेष बैराठ, रैध और भानगढ़ जैसे स्थानों के निकट मिले हैं।”
प्राचीन काल: राजस्थान का गौरवशाली अतीत
प्रागैतिहासिक युग में, उत्तर-पश्चिमी राजस्थान आज की तरह विशाल मरुस्थल नहीं, बल्कि एक जीवंत क्षेत्र था, जहाँ सरस्वती और दृशद्वती जैसी महान नदियाँ प्रवाहित होती थीं। इन नदियों के तटों पर हड़प्पा, ‘ग्रे-वेयर’ और ‘रंगमहल’ जैसी उन्नत सभ्यताएँ पनपीं। कालीबंगा के निकट हुई खुदाइयों से पता चलता है कि यहाँ लगभग पाँच हज़ार वर्ष पूर्व एक विकसित नगरीय संस्कृति फल-फूल रही थी। ये सभ्यताएँ सैकड़ों किलोमीटर तक फैली हुई थीं, जो इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करती हैं।
छोटे गणराज्यों का युग
ईसा पूर्व चौथी शताब्दी तक, यह क्षेत्र अनेक स्वतंत्र गणराज्यों में विभाजित था, जिनमें मालव और शिवी सबसे प्रमुख थे। इनकी शक्ति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने सिकंदर जैसे विश्वविजेता को पंजाब से आगे बढ़ने से रोक दिया। शिवी जनपद पर भील शासकों का अधिकार था, जिन्होंने सिकंदर के आक्रमण को विफल कर दिया। उत्तरी बीकानेर पर यौधेयों जैसे वीर योद्धा कबीलों का शासन था, जो अपनी सैन्य शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे।
महाजनपदों का उदय
महाभारत काल में मत्स्य महाजनपद का विस्तार पूर्वी राजस्थान और जयपुर के बड़े भू-भाग पर था। उनकी राजधानी विराटनगर (आज का बैराठ) थी, जिसकी प्राचीनता सम्राट अशोक के शिलालेखों और चौथी-पाँचवीं शताब्दी के बौद्ध मठों के अवशेषों से प्रमाणित होती है।
मौर्य, कुषाण और हूणों का प्रभाव
भरतपुर, धौलपुर और करौली उस समय सूरसेन जनपद का हिस्सा थे, जिसकी राजधानी मथुरा थी। नोह जैसे स्थलों पर मिली मूर्तियाँ और बर्तन मौर्योत्तर काल की समृद्धि को दर्शाते हैं। कुषाण काल (तीसरी शताब्दी) तक उत्तरी और मध्य राजस्थान एक संपन्न क्षेत्र था। हालाँकि, छठी शताब्दी में हूण आक्रमणकारी तोरामण के नेतृत्व में इस क्षेत्र को लूटा गया, परंतु यशोधर्मन ने उन्हें पराजित कर गुप्त साम्राज्य का प्रभुत्व पुनः स्थापित किया। सातवीं शताब्दी तक, ये गणराज्य पुनः स्वतंत्र राज्यों के रूप में उभरने लगे, जो राजस्थान के इतिहास के एक नए अध्याय का सूचक था।
शैली विशेषताएँ:
अधिक प्रवाहमय और कथात्मक भाषा।
घटनाओं को क्रमबद्ध तरीके से जोड़ा गया है।
कुछ नए शब्दों और वाक्य संरचनाओं का प्रयोग।
महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है।